शनिवार, 31 मार्च 2018

विद्यार्थियों के ज्ञान संरचना में एक अध्यापक की भूमिका

एक अध्यापक होने के नाते आप अपने विद्यार्थियों के ज्ञान संरचना में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए ?




मेरे ख्याल से इस प्रश्न का उत्तर जानने में आप हमें सपोर्ट करेंगे ।जो इस प्रकार है:–



1. अपने विद्यार्थियों को बिना आदेश दिए उन्हें नयी अवधारणाओं को सीखने में मदद करना चाहिए ।



2. कक्षा में प्रत्येक विद्यार्थी जो कुछ भी पहले से सीखे हैं उनके अनुभव के प्रति हमें संवेदनशील होना चाहिए ।



3. विद्यार्थियों को वास्तविक संसारिक कार्य करने के लिए देना चाहिए ।



4. नजदीक के वातावरण से जितना संभव हो सके विद्यार्थियों को विषय वस्तु व अनुभव प्रदान करना चाहिए ।



5. वास्तविक संसारिक समस्या सुलझाने व वास्तविक नियमों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ।



6. किसी भी समस्या समाधान के लिए बहुपक्षीय नजरिया ( विद्यार्थी का) रखने पर प्रोत्साहन करते हुए विभिन्न समाधान खोजना चाहिए ।



7. विद्यार्थियों को प्रश्न पूछने की अनुमति देना और उन्हें बुद्धिमतापूर्ण प्रश्न उठाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ।



8. विद्यार्थियों को मन ही मन में सोचने का अभ्यास विकसित करना चाहिए । आप जानते हैं कि बुद्धिमतापूर्ण प्रश्न पूछने की कला को उकसाने से छात्र अंदर ही अंदर मन में सोचते हैं ।



9. कक्षा में सदभावना पूर्वक मिल-जुलकर अधिगम को बढ़ावा देना चाहिए ।



10. एक अध्यापक को चाहिए कि वह अपने अधिगम की वृद्धि का स्वयं विश्लेषण व स्वयं की जांच करें ।



11. अधिगम को वास्तविक, संबंधित व समय के अनुकूल बनाने के लिए वास्तविक संसारिक वस्तुओं और अनुकूलित वातावरण प्रदान करने की कोशिश करना चाहिए ।





मैं वीरेंद्र कुमार मेहता सभी पाठकों से आशा करता हूं की हमारा यह आर्टिकल उन्हें विद्यार्थियों के प्रति एक सही मार्ग सुनिश्चित करेगा ।
शिक्षाकर्मी परियोजना के बारे में जानने के लिए  दिए हुए लिंक पर क्लिक करें । https://youtu.be/50hkDhH_9Pg


गुरुवार, 29 मार्च 2018

शिक्षा के क्षेत्र में लड़कियों के लिए परियोजनाएं

लड़कियों के लिए परियोजनाएं 
By बिरुहिन्दुस्तानी

परिवार तथा समाज के लिए लड़कियों की शिक्षा के महत्व को ध्यान में रखते हुए राज्य ने इनकी शिक्षा के लिए विभिन्न योजनाएं आरंभ की ।

1. उपस्थिति के लिए भत्ता:– कक्षा 1 से 5 तक ड्रॉप आउट दर को कम करने के लिए पिछड़े वर्गों की सभी लड़कियों को प्रतिदिन ₹1 भत्ता दिया जाता है, यदि वे विद्यालय में 75% कार्य दिवसों तक उपस्थित रहती है ।

 2. अहिल्याबाई होल्कर द्वारा लड़कियों के लिए निशुल्क यात्रा स्कीम:– 1997 में सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियों के लिए निशुल्क यात्रा स्कीम चलाई ताकि लड़कियां शिक्षा से वंचित ना रह जाए  । यह स्कीम उन्हीं प्रशिक्षण पर लागू है जिनकी उपस्थिति वर्ष में 75% कार्य दिवसों की होगी । 

3. मातृ प्रबोधन परियोजना:– ग्रामीण क्षेत्रों में प्रारंभिक शिक्षा के सार्विकीकरण के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, माताओं को बच्चे की शिक्षा, उनके स्वास्थ्य और व्यक्तित्व विकास के विषय में शिक्षित करने के लिए यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है ।

4. आर्मी स्कूल:–महाराष्ट्र की लड़कियों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने नासिक में भोर स्थान पर आर्मी विद्यालय आरंभ किया है जहां पर लड़कियों को कुछ छात्रवृत्ति भी मिलती है तथा यदि वे शारीरिक रूप से फिट है तो आगे प्रशिक्षण देने का अवसर भी दिया जाता है । 

5.  समूह–निवासी विद्यालय:– उन लड़कियों के लिए जो दूरस्थ स्थानों से आती है जिसके कारण विद्यालय में नहीं पहुंच पाती है ऐसी लड़कियों के लिए समूह निवासी विद्यालय का प्रबंध किया गया है ।

त्रिभाषा सूत्र के बारे में जानिए क्लिक कीजिए । http://biruhindustani.blogspot.in/2018/03/1952-53-1964-66-1.html?m=1


किसी प्रकार की त्रुटि संबंधी शिकायत के लिए हमसे संपर्क करें । वीरेंद्र कुमार मेहता मोबाइल नंबर 06200120073



शनिवार, 24 मार्च 2018

यूनिस्को शिक्षा के क्षेत्र। में

पाठ्यक्रम 501, ब्लॉक 3 
प्रारंभिक शिक्षा के सार्विकीकरण में अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की भूमिका  



1. यूनेस्को 

आप जानते हैं कि 16 नवंबर 1945 में लंदन में हुए विश्व सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन ( यूनेस्को – United Nations Educational  Scientific and Cultural Organisation) की स्थापना की गई जिसका उद्देश्य शिक्षा के माध्यम से शांति बढ़ावा को देना था यूनेस्को का मुख्यालय पेरिस में है ।
 यूनेस्को के अनुसार अधिगम का महत्व आर्थिक विकास और शांति से है यूनेस्को एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है यूनेस्को ने स्वतंत्र राष्ट्रों को भौतिक तथा मानव संसाधन सहायता प्रदान करता है ताकि उनका शैक्षिक विकास हो सके यह संस्था अध्यापकों को प्रशिक्षित करने , अध्ययन पाठ्यक्रम निर्मित करने के लिए कार्यक्रम आयोजित कर करती है इन्होंने  ही 1990 क जॉमेितीयन सम्मेलन को प्रायोजित किया । इस संस्था ने अपने सहयोगी राष्ट्रों के साथ परामर्श करके सबके लिए शिक्षा अभियान में सहयोग दिया है सबके लिए शिक्षा अभियान के समर्थन में यूनेस्को ने निम्नलिखित दस्तावेजों का निर्माण किया:-

1.  क्रियाविधि योजना :- अर्थात जो राष्ट्रीय, क्षेत्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लिए जाने वाले क्रियाविधि को संगठित तथा युक्ति युक्त करता है ।

 2. सब के लिए शिक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय क्रियाविधि योजना तैयार करने के लिए दिशानिर्देश:- जिसका उद्देश्य सदस्य देशों की राष्ट्रीय सबके लिए शिक्षा योजनाओं के निर्माण में सहायता करना है ।

 3.  सबके लिए शिक्षा के समर्थन में विकास साझीदार सहयोग दस्तावेज:- इसमें मूलाचार तथा कार्यनीतियां सबके लिए शिक्षा पर सूचना बांटने के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक न्यूज़ बुलेटिन बोर्ड की स्थापना की गई जो महत्वपूर्ण घटनाओं और उपलब्धियों पर नियमित रुप से सूचना देता है।

आइए आप जानते हैं यूनेस्को की सबके लिए शिक्षा के प्रति वचनबद्ध क्या-क्या है?
इसमें इसका पांच केंद्रीय क्षेत्र है 
1  सबके लिए शिक्षा को यूनेस्को के सभी कार्यक्रमों या कार्यकलाप में पूर्ण रूप से संगठित करना हैं ।

 2. सबके लिए शिक्षा के क्रियान्वयन में देशों की सहायता करना – उदाहरण के तौर पर बताएं तो शिक्षा नीतियों के निर्माण में सहायता करना जो अपवर्जित अर्थात Excluded समूह को पोषित करती है ।

 3. क्षमता निर्माण तथा देशों के मध्य आदान-प्रदान के लिए क्षेत्रीय रचना तंत्रों का विकास करना हैं ।

4.  संसाधनों का अधिक कुशल उपयोग करना तथा बेसिक शिक्षा में अधिक निवेश करना हैं ।और

 5.  सबके लिए शिक्षा का अंतरराष्ट्रीय बैठकों में समर्थन कर वैश्विक स्तर पर सबके लिए शिक्षा की गति को बनाए रखना है ।

मैं अपने पाठकों से आशा करता हूं हमारा यह आर्टिकल पसन्द कर रहे होंगे ।

इसे आप मेरे साथ वीडियो के माध्यम  से पढ़ने के साथ -साथ सुन भी सकते है । नीचे दिए हुए लिंक  क्लिक कीजिए ।

गुरुवार, 22 मार्च 2018

द्वितीय भाषा में क्षमता विकसित करने संबंधित तथ्य

द्वितीय भाषा में क्षमता विकसित    करने संबंधित कुछ तथ्य



भाषा के नियमों को याद कर लेना भाषा सीखने की प्रक्रिया का विकल्प नहीं है जो कि बच्चे के भाषा का धाराप्रवाह प्रवक्ता बनने में मदद करता है हालांकि यह बच्चे द्वारा बोले और लिखे गए भाषा और उसके सही-गलत की जांच में सहायता कर सकता है ।


 *क्रेशन* के अनुसार " सामान्यत:" अर्जुन द्वितीय भाषा में हमारी अभिव्यक्ति की शुरुआत करता है और यह हमारी धारा प्रवाहित के लिए उत्तरदाई होता है  । अधिगम का केवल एक प्रकार्य है और वह है जांचकर्ता या संपादक की तरह काम करना *अधिगम की भूमिका में* हमारे उच्चारण रूपों में परिवर्तन करना है जो कि सीखने की प्रणाली द्वारा पहले से ही सीखें जा चुके होते हैं यह हमारे बोलने या लिखने से पहले या स्वयं संशोधन के बाद हो सकता है ।

*यह कहना जरूरी नहीं है कि व्याकरण के नियमों का सचेत रूप से सीखना केवल एक जांचकर्ता के रूप में ही भूमिका निभा सकता है  हा ऐसा कब होगा  जब व्यक्ति के पास सोचने-विचारने और नियमों का प्रयोग करने के लिए पर्याप्त समय हो तथा बोले जा रहे  वाक्यों की उच्चारण शुद्धता पर उसका निरंतर ध्यान हो* सामान्यत: जब वक्ताओं के बीच बातचीत हो रही हो होती है तो वहां शुद्धता से अधिक धारा प्रवाहित की आवश्यकता होती है ।

तारीख 22 मार्च 2018

*जय हिंद*



त्रिभाषा  सूत्र  के बारे में जानने के लिए  दिए हुए लिंक पर क्लिक करें http://biruhindustani.blogspot.in/2018/03/1952-53-1964-66-1.html?m=1

बुधवार, 21 मार्च 2018

भारत में शास्त्रीय भाषाएं


शास्त्रीय  भाषाएं 


हम शास्त्रीय भाषा उसे कहते हैं जो कि लंबे समय से चला आ रहा हो, जिसका स्वतंत्र रूप से व्याकरणिक परंपरा हो तथा  मौलिक साहित्य भंडार हो ।

आइए अब हम जानते हैं कि भारत में शास्त्रीय भाषाएं घोषित करने के  क्या प्रावधान है:–

1. जिस भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित करना है उस भाषा का 1500 से 2000 वर्ष पुराना लिखित इतिहास या लिखित ग्रंथ होनी चाहिए ।

 2.  उसका एक प्राचीन साहित्य या ग्रंथ हो जिसे कि उस भाषा को बोलने वाले उस भाषा को बहुमूल्य विरासत मानते हो ।

3 . उस भाषा के साहित्य परंपरा मौलिक  होना चाहिए ना कि किसी अन्य भाषिक समुदाय से उधार ली हुई हो ।


आइए अब हम जानते हैं कुछ तथ्य जो कि आपको जानने चाहिए ।

जून 2004 में तमिल भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया ।
 2005 में संस्कृत भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया था । तथा

2008 में कन्नड़ वा तेलुगू को भी शास्त्रीय भाषाएं घोषित किया गया ।

और भी जानकारी के लिए देखिए हमारे YouTube चैनल Biruhindustani For Hindustan

त्रिभाषा सूत्र के साथ विद्यालय पाठ्यक्रम में अंग्रेजी भाषा का स्थान:

त्रिभाषा सूत्र के साथ विद्यालय पाठ्यक्रम में अंग्रेजी भाषा का स्थान:– 
SBVM निमिया, डालटनगंज

माध्यमिक शिक्षा आयोग (1952 – 53) ने अंग्रेजी के महत्व पर जोर दिया । भारतीय शिक्षा आयोग (1964 – 66) ने भी उसके महत्व को स्वीकारा । इसने दसवीं क्लास तक त्रिभाषा सूत्र की अनुशंसा की जिसके अंतर्गत:–


प्रथम भाषा 

स्कूल में पहली भाषा जो पढ़ाई जाए वह मातृभाषा होनी चाहिए या क्षेत्रीय भाषा होनी चाहिए ।

द्वितीय भाषा

1.  इसके अंतर्गत हिंदी भाषी राज्यों में द्वितीय भाषा के रूप में उसे स्वीकार किया गया है जो दूसरा आधुनिक भाषा होनी चाहिए( हिंदी को छोड़कर )या अंग्रेजी होनी चाहिए ।

2. ऐसे राज्य जहां पर हिंदी नहीं बोली जाती हैं  वहां पर द्वितीय भाषा के रूप में हिंदी या अंग्रेजी होनी चाहिए ।


तृतीय भाषा

1. ऐसे राज्य जहां पर हिंदी बोली जाती है वहां पर तीसरी भाषा के रूप में अंग्रेजी या कोई भी एक आधुनिक भारतीय भाषा होना चाहिए जो द्वितीय भाषा के रूप में ना पढ़ी जा रही हो ।
2. ऐसी राज्य जहां पर हिंदी नहीं बोली जाती वहां पर तीसरी भाषा अंग्रेजी होनी चाहिए या एक आधुनिक भारतीय भाषा होनी चाहिए जो कि वहां पर द्वितीय भाषा के रूप में ना पढ़ी जा रही हो ।


राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के अनुसार, ' भारत के बहुभाषी समाज में अंग्रेजी एक वैश्विक भाषा है । अंग्रेजी शिक्षण का लक्ष्य ऐसे बहुभाषी लोगों को तैयार करना है जो हमारी भाषाओं को समृद्ध कर सके । विभिन्न राज्यों में अन्य भारतीय भाषाओं के साथ अंग्रेजी का स्थान बनाने की आवश्यकता है, जहां अन्य भाषाएं अंग्रेजी सीखने–सिखाने को समृद्ध करें, वही अंग्रेजी माध्यम की स्कूल में अंग्रेजी के वर्चस्व को कम करने के लिए अन्य भारतीय भाषाओं के मूल्यवर्धन की जरूरत है । अंग्रेजी पढ़ाने वाले शिक्षकों की अंग्रेजी में बुनियादी दक्षता होनी चाहिए  । कक्षा 10 में विद्यार्थियों की असफलता का एक मुख्य कारण अंग्रेजी है ।


मैं अपने सभी पाठकों से आशा करता हूं कि हमारा यह आर्टिकल आपको बहुत पसंद आया होगा ।
कृपया करके मैं सभी पाठकों से अनुरोध करता हूं कि इसके कमेंट बॉक्स में आप  अपना फीडबैक जरूर दें । 

हम फिर आपसे मिलेंगे एक नई आर्टिकल के साथ के साथ तब तक के लिए देखते रहिए हमारे YouTube चैनल बिरुहिन्दुस्तानी For हिंदुस्तान ।

https://youtu.be/xtOhqv9S_EU 



जय हिंद ।http://biruhindustani.blogspot.in/2018/03/1952-53-1964-66-1.html?m=1

http://biruhindustani.blogspot.in/2018/03/blog-post_43.html?m=1

मंगलवार, 20 मार्च 2018

भारत में भाषा – शिक्षा नीति


भारत में भाषा – शिक्षा नीति


स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार और राज्य सरकारें राष्ट्रीय प्रगति और सुरक्षा के प्रभावी साधन के रूप में शिक्षा पर अधिकाधिक ध्यान देती रही हैं । विभिन्न आयोगों और समितियों द्वारा शैक्षिक पुनर्निर्माण हेतु प्रस्तुत सिफारिशों को जानना , भारत में भाषा शिक्षा संबंधी नीति को समझने के लिए जरूरी है  । शिक्षा की राष्ट्रीय नीति 1968 में यह स्वीकार किया गया कि भारतीय भाषाओं और साहित्य का उत्साह के साथ विकास करना शैक्षिक तथा सांस्कृतिक विकास की एक अनिवार्य शर्त है । जब तक इसे पूरा नहीं किया जाएगा लोगों की सृजनात्मक शक्तियां क्रियाशील नहीं होगी, शिक्षा के स्तर में सुधार नहीं आएगा जनसाधारण तक ज्ञान नहीं पहुंचेगा और बुद्धिजीवीयो तथा जनसाधारण के बीच में खाई कम नहीं होगी, प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं में प्रादेशिक भाषाओं को पहले से ही शिक्षा के माध्यम के रूप में व्यवहारिक किया जा रहा है । इसमें यह भी कहा गया है कि माध्यमिक कक्षाओं में राज्य सरकार को त्रिभाषा सूत्र लागू करना चाहिए अर्थात माध्यमिक स्तर पर बच्चे 3 भाषाएं पढ़ेंगे ।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में भाषाओं के विकास के संबंध में 1968 की नीति को और अधिक तेजी वह सार्थकता के साथ कार्यान्वित करने के बात स्वीकार की गई हैं ।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की समीक्षा( राम मूर्ति) समिति, 1990 की महत्वपूर्ण संस्तुतियों में से एक है – ग्रामीण छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करने की ओर प्रवृत्त नहीं हो पाते, इसका एक गंभीर कारण यह है कि आज भी अंग्रेजी भाषा का प्रभुत्व कायम है । इसलिए समय की मांग है कि शिक्षा के सभी स्तरों पर शिक्षा के माध्यम के रूप में क्षेत्रीय भाषाओं को प्रोत्साहित किया जाए  । 

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के अनुसार बच्चों में भाषा सीखने की जन्मजात क्षमता होती है । ज्यादातर बच्चे स्कूली शिक्षा की शुरुआत से पहले ही भाषा की जटिलताओं और नियमों को आत्मसात कर पूर्ण भाषिक क्षमता प्राप्त कर लेते हैं । कई बार जब बच्चे स्कूल आते हैं तो उनमें पहले से ही दो या तीन भाषाओं को समझने और बोलने की क्षमता होती है ।
इस पाठ्यचर्या ने त्रिभाषा सूत्र को प्रभावी रूप से लागू करने का सुझाव दिया है जिसमें आदिवासी भाषाओं सहित बच्चों की मातृभाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में स्वीकृति देने पर जोर दिया गया है । प्रत्येक बच्चे में बहुभाषिक प्रवीणता विकसित करने के लिए भारतीय समाज के बहुभाषिक चरित्र को एक संसाधन के रूप में देखना चाहिए जिसमें अंग्रेजी में प्रवीणता भी शामिल है   यह तभी मुमकिन है जब भाषा शिक्षण का पूरा शिक्षाशास्त्र मातृभाषा के उपयोग पर आधारित हो ।
द्विभाषिकता या बहुभाषिकता से निश्चित रूप से संज्ञानात्मक लाभ होते हैं । त्रिभाषा सूत्र भारत की भाषाएं की चुनौतियों और अवसरों को संबोधित करने का एक प्रयास है यह एक रणनीति है जिसके अंतर्गत कई भाषाएं सीखने के मार्ग को प्रशस्त किया है । ।

मैं आप सभी से यह उम्मीद करता हूं कि हमारा यह आर्टिकल पसंद आया होगा अतः नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में हमें बताएं हमें अपने सुझाव दें हम फिर मिलेंगे एक नए पाठ के साथ तब तक के लिए ।  जय हिंद ।

सोमवार, 19 मार्च 2018

केस अध्ययन

केस अध्ययन (Case Study)
बिरेन्द्र मेहता 


 केस अध्ययन एक व्यक्ति, एक परिवार, एक विद्यालय या बच्चों के एक समूह का गहन अन्वेषण है । शिक्षा में समस्या ग्रस्त बच्चों की पृष्ठभूमि वतावरण और उनकी विशेषताओं का निर्धारण करने के लिए आयोजित किया जाता है ।  वर्तमान अवस्था, पुराने अनुभव और अन्य संबंधित घटनाओं के बारे में आवश्यक आंकड़े एकत्रित करके हम समस्याग्रस्त बच्चों जैसे भगोड़ा, अल्पज्ञ , आक्रामक, निराशा ग्रस्त, के वर्तमान व्यवहार और निष्पादन को समझ सकते हैं । इन आंकड़ों का गुणात्मक विश्लेषण केस का व्यापक और समायोजित दृश्य की संरचना करने में सहायक होता है । अध्ययन उपाय उपागम में अन्वेषक अर्थात अध्यापक व्यक्ति को अद्वितीय केस मानकर अपनी रुचि को उन्हीं तक सीमित रखता है या व्यक्तियों के एक छोटे समूह से आंकड़े एकत्रित करता है । हालांकि आंकड़ों का वस्तुपरक एकत्रीकरण और विश्लेषण तकनीकों में पक्षपात पूर्ण ढंग से व्यक्तिगत विचार का समावेश करने का खतरा लगातार बना रहता है ।
अन्वेषक को केस अध्ययन आयोजित करने से संबंधित सभी कौशलों से अच्छी तरह से परिचित होना चाहिए । केस अध्ययन आयोजित करते समय निम्नलिखित चरणों का अनुसरण आप कर सकते हैं ।


1. केस का वर्तमान अवस्था का निर्धारण करना प्रत्यक्ष अवलोकन के द्वारा निर्धारण किया जा सकता है । आप किसी भी प्रकार के परीक्षण की सहायता ले सकते हैं । अभिभावकों सहपाठियों से बात करके बच्चों के बारे में सूचना प्राप्त कर सकते हैं । 
2. सबसे अधिक संभावित पूर्ववृत्त का निर्धारण करना - यह सूचना कार्य योग्य परिकल्पना की रचना करने में सहायता करता है ।
3. पूर्ववृत्त का सत्यापन करना ।

4. कारणों का निदान करना और कारण के प्रकरण में सुधारात्मक उपाय की योजना बनाना ।

5.  केस का अनुवर्तन कार्यक्रम ।

 6.एक प्रभावकारी तकनीक के रूप में केस अध्ययन समस्या को पहचानने और रणनीति विकास के लिए योजना बनाने में किस से संबंधित सूचना देता है ।

निष्कर्ष

अतः हम पाते हैं कि केस अध्ययन अध्यापक को बच्चे के उस समस्या का निराकरण करने के लिए उपयुक्त रणनीति का विकास करने के लिए सहायता करता है जिसके कारण बच्चे के अधिगम में बाधा उत्पन्न होती है यह अध्यापक को केस का व्यापक आकलन करने के योग्य बनाता है ।

क्रियाकलाप

यहां पर आप इसके माध्यम से एक क्रियाकलाप कर सकते हैं जैसे एक या दो विद्यार्थी की पहचान करें जो नियमित रुप से विद्यालय में उपस्थित नहीं होते हैं उनके अभिभावको सहपाठियों से सलाह लेकर सूचना प्राप्त करें । ज्ञात करें कि इस प्रकार के व्यवहार का क्या कारण है ? उस अवांछित गतिविधियों को रोकने के लिए एक रणनीति का विकास करें  केस पर एक रिपोर्ट लिखें ।



मैं उम्मीद करता हूं की सभी पाठकों को हमारा यह  केस अध्ययन से संबंधित जानकारियां पसंद आया होगा ।

मैं आपसे अनुरोध कर रहा हूं कि यदि हमारा यह आर्टिकल आपको अच्छा लगा तो हमारे कमेंट बॉक्स में इसका जवाब जरूर दें और इसे शेयर करें ।


हमारे मित्रों अगर आप आर्टिकल को पढ़ते पढ़ते थक जाए तो इस दिए हुए लिंक पर क्लिक करके हमारे साथ वीडियो का आनंद ले लीजिए तथा साथ ही साथ पढ़ भी लीजिए
  ।https://youtu.be/xvWBJnGcPMw




क्या आप जानते हैं की मैं ही वीरेंद्र कुमार मेहता तथा वीरू हिंदुस्तानी हूं । मैं अपना भारत अपना झारखंड  अपना पलामू का ही हूं ।

मेरा इमेल है mehta.birendra@ymail.com

भाषा केया है? के अंतर्गत मानकीकृत भाषा

मानकीकृत भाषा

मानकीकरण की परंपरागत प्रक्रिया में कई चरण है । पहला चरण यह है कि किसी समाज में प्रचलित भाषाओं में से एक विशेष भाषा को चुना जाता है ।जो समाज की उस वर्ग से होती है जो सत्ता में होता है । अगर उच्च कोटि के वर्ग ब्राह्मण सता में होंगे तो मानकीकृत भाषा संस्कृत होगी । अगर अरब से आए लोगों सत्ता में होंगे तो मानकीकृत भाषा अरबी होगी और अगर फारसी बोलने वाले राज करेंगे तो मानकीकृत भाषा फारसी होगी । जब अंग्रेज भारत आए तो भारत की सब भाषाओं को छोड़कर अंग्रेजी का बोलबाला हो गया  ।
दूसरा चरण यह है कि इन भाषाओं की अनेक शैलियों / बोलिए में से कौन सा शैलियां बोली चुनी जाएगी । एक बार फिर वही शैली या बोली चुन्नी जाती है जो सत्ताधारी वर्ग से जुडी होती है  । जब अंग्रेजी की बात होगी तो अंग्रेजी के उस रूप का विकास होगा जो ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज के आसपास बोला जाता है । जब हिंदी की बात होगी तो खड़ी बोली की बात होगी और ब्रज और अवधी जैसी भाषाएं हिंदी की बोलियां कहलाने लगेंगे ।
 तीसरे चरण में चुने हुए  रूप के व्याकरण लिखे जाते हैं व अलग अलग तरह के शब्दकोश बनते हैं । कई तरह के संदर्भ ग्रंथ लिखे जाते हैं । इसी शैली में सरकार का कामकाज होता है । व अखबार और पत्रिकाएं आदि छपते हैं । यही शैली शिक्षा का माध्यम बनती है और प्रचार का भी । इन्हीं सब गतिविधियों के माध्यम से भाषा का मानकीकरण होता है मानकीकरण के चौथे व अंतिम चरण में भाषा का हर क्षेत्र में , हर संभव तरीके से विकास करने की प्रयास किए जाते हैं । मानकीकरण की चरम सीमा पर एक ही व्याकरण या एक ही शब्दकोश नहीं होता बल्कि उस भाषा के अनेक व्याकरण या  अनेक शब्दकोश बन जाते हैं । वास्तव में हर विषय का अपना शब्दकोश अलग से लिखा जाने लगता है

मानकीकरण की प्रक्रिया सामाजिक शोषण की प्रक्रिया से जुड़ी है ऐसा होता है कि किसी भी समाज में प्रचलित अनेक भाषाओं में से किसी एक को चुन लिया जाता है और यह चुनाव ज्यादातर इस आधार पर होता है कि कौन ताकतवर है किसके पास धन है किसके पास राजनयिक शक्ति है ।

मनोविज्ञान का स्वरूप एवं परिभाषा

मनोविज्ञान का स्वरूप तथा परिभाषा सरल शब्दों में मनोविज्ञान मानसिक प्रक्रियाओं अनुभवों तथा व्यक्त और अव्यक्त दोनों प्रकार के व्यवहार...