सोमवार, 19 मार्च 2018

भाषा केया है? के अंतर्गत मानकीकृत भाषा

मानकीकृत भाषा

मानकीकरण की परंपरागत प्रक्रिया में कई चरण है । पहला चरण यह है कि किसी समाज में प्रचलित भाषाओं में से एक विशेष भाषा को चुना जाता है ।जो समाज की उस वर्ग से होती है जो सत्ता में होता है । अगर उच्च कोटि के वर्ग ब्राह्मण सता में होंगे तो मानकीकृत भाषा संस्कृत होगी । अगर अरब से आए लोगों सत्ता में होंगे तो मानकीकृत भाषा अरबी होगी और अगर फारसी बोलने वाले राज करेंगे तो मानकीकृत भाषा फारसी होगी । जब अंग्रेज भारत आए तो भारत की सब भाषाओं को छोड़कर अंग्रेजी का बोलबाला हो गया  ।
दूसरा चरण यह है कि इन भाषाओं की अनेक शैलियों / बोलिए में से कौन सा शैलियां बोली चुनी जाएगी । एक बार फिर वही शैली या बोली चुन्नी जाती है जो सत्ताधारी वर्ग से जुडी होती है  । जब अंग्रेजी की बात होगी तो अंग्रेजी के उस रूप का विकास होगा जो ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज के आसपास बोला जाता है । जब हिंदी की बात होगी तो खड़ी बोली की बात होगी और ब्रज और अवधी जैसी भाषाएं हिंदी की बोलियां कहलाने लगेंगे ।
 तीसरे चरण में चुने हुए  रूप के व्याकरण लिखे जाते हैं व अलग अलग तरह के शब्दकोश बनते हैं । कई तरह के संदर्भ ग्रंथ लिखे जाते हैं । इसी शैली में सरकार का कामकाज होता है । व अखबार और पत्रिकाएं आदि छपते हैं । यही शैली शिक्षा का माध्यम बनती है और प्रचार का भी । इन्हीं सब गतिविधियों के माध्यम से भाषा का मानकीकरण होता है मानकीकरण के चौथे व अंतिम चरण में भाषा का हर क्षेत्र में , हर संभव तरीके से विकास करने की प्रयास किए जाते हैं । मानकीकरण की चरम सीमा पर एक ही व्याकरण या एक ही शब्दकोश नहीं होता बल्कि उस भाषा के अनेक व्याकरण या  अनेक शब्दकोश बन जाते हैं । वास्तव में हर विषय का अपना शब्दकोश अलग से लिखा जाने लगता है

मानकीकरण की प्रक्रिया सामाजिक शोषण की प्रक्रिया से जुड़ी है ऐसा होता है कि किसी भी समाज में प्रचलित अनेक भाषाओं में से किसी एक को चुन लिया जाता है और यह चुनाव ज्यादातर इस आधार पर होता है कि कौन ताकतवर है किसके पास धन है किसके पास राजनयिक शक्ति है ।

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